Saturday, August 4, 2012

रक्षाबंधन कच्चे धागे का पक्का रिश्ता

रक्षाबंधन
कच्चे धागे का पक्का रिश्ता
बड़ा ही अनूठा होता है भाई-बहन का रिश्ता। इस रिश्ते की आभा रक्षाबंधन के अवसर पर तब और बढ़ जाती है, जब बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है। बॉलीवुड स्टार्स भी भाई-बहन के रिश्ते की इस आभा से अछूते नहीं हैं। वे भी अपनत्व की डोर से बंधे हैं। अपने इस प्यारे रिश्ते को वे किस खूबसूरती से निर्वाह करते हैं, जानना चाहा है रंगारंग ने कुछ स्टार्स से।

तुषार कपूर
मेरी एक ही बहन है एकता कपूर। बचपन से ही एकता और मैं बेहद करीब रहे हैं। एक-दूसरे की बहुत केयर करते हैं। लेकिन बचपन में हम एक-दूसरे से बहुत झगड़ते थे, क्योंकि वह मुझसे बहुत दादागीरी दिखाती थी। लेकिन अब तो हमें एक-दूसरे से बात करने का भी वक्त नहीं मिलता। इसके बावजूद हम एक-दूसरे की पूरी खैर-खबर रखते हैं। एकता को जैसे ही पता चलता है कि मैंने कोई गलत फिल्म साइन कर ली है, तो तुरंत बात करती है, मेरी जमकर खबर लेती है। इसीलिए मुझे जब भी एडवाइज की जरूरत होती है, तो मैं एकता से ही लेता हूं। रक्षाबंधन पर एकता का एक अलग ही रूप देखने को मिलता है। वह एक बहुत अच्छी बच्ची की तरह मुझे राखी बांधती है, मिठाई खिलाती है। लेकिन एक बार राखी बांधने का कार्यक्रम पूरा हुआ नहीं कि वह फिर से मुझसे दादागीरी दिखाने लगती है। सच कहूं तो एकता की यह दादागीरी मुझे बहुत अच्छी लगती है, क्योंकि इससे उसका अपनापन और प्यार झलकता है। े

अक्षय कुमार
मेरी बहन अलका कपूर मेरी सबसे बड़ी आलोचक हैं, यही उनकी सबसे बड़ी खूबी है। मुझे ऐसे लोग ज्यादा पसंद हैं, जो मेरे मुंह पर मेरी आलोचना करने की और मुझे सच्चाई से रूबरू कराने की हिम्मत रखते हैं। यह खूबी मेरी बहन में है। मेरी बहन मुझे बहुत प्यार करती हैं, लेकिन मेरी गलत बात पर मुझे बिलकुल भी सपोर्ट नहीं करतीं। गलती करने पर आज भी वह मुझे ऐसे डांट देती हैं, जैसे वह मेरी बहन न होकर मां हों। लेकिन मैं उनकी बात का बिलकुल भी बुरा नहीं मानता, क्योंकि वह साफ दिल की हैं और उनके दिल से मेरे लिए हमेशा दुआ ही निकलती है। रक्षाबंधन पर मैं अपनी बहन से राखी बंधवाने जरूर जाता हूं। साथ ही उनके लिए ढेर सारे गिफ्ट भी लेकर जाता हूं। वह मुझे पूरे रीति-रिवाज के साथ राखी बंाधती हैं। मैं उनके चरण स्पर्श करके उनका आशीर्वाद लेता हूं।

मल्लिका शेरावत
मेरा भाई विक्रम लांबा मेरा सबसे अच्छा दोस्त है, उसने हमेशा मेरा साथ दिया है। उसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह मुझसे इतना प्यार करता है कि मेरी खुशी के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता है। हालांकि ऐसा नहीं है कि हमारे बीच कभी कहा-सुनी नहीं होती, लेकिन हर बार वह ही अपनी रूठी बहन को मनाता है। हालांकि मुझे भी अपने भाई विक्रम से बहुत प्यार है, मंै उसके लिए कुछ भी कर सकती हूं। रक्षाबंधन का त्योहार मेरे लिए बहुत मायने रखता है। हर रक्षाबंधन पर विक्रम मेरे लिए मनपसंद गिफ्ट लाता है। फिर चाहे बचपन में अपनी पॉकेट मनी से बचाकर मेरे लिए टैडी बियर लाना हो या फिर अब मेरे लिए मेरी मनपसंद ज्वेलरी हो। हर रक्षाबंधन को मैं भगवान से यही प्रार्थना करती हूं कि वह मेरे भाई का जीवन खुशियों से भर दें।

रणबीर कपूर
मैं अपनी बहन रिद्धिमा को बहुत मिस करता हूं। जब तक उसकी शादी नहीं हुई थी, तब तक हम दोनों साथ-साथ खूब मजे किया करते थे। लेकिन अब उसकी शादी हो गई है, तो उसके साथ बिताए सभी पल मुझे बहुत याद आते हैं। कई बार जब मुझे उसकी बहुत याद आती है तो मंै उसको फोन कर लेता हूं, क्योंकि शूटिंग में बहुत बिजी होने के चलते मैं उससे मिलने नहीं जा पाता। हम मिल भले न पाएं, पर टच में हमेशा रहते हैं। हम भाई-बहन में अच्छी अंडरस्टैडिंग है, यही वजह है कि कई बार बिजी होने के चलते या आउटडोर शूटिंग के कारण अगर मैं रिद्धिमा से राखी नहीं बंधवा पाता तो वह बिलकुल बुरा नहीं मानती है। मेरी राखी संभालकर रख लेती है। जब भी मैं उससे मिलने जाता हूं, वह मुझे वही राखी बांध देती है। मैं भी रिद्धिमा के लिए हर रक्षाबंधन पर गिफ्ट जरूर खरीदता हूं और मिलने पर उसे दे देता हूं।

सोनाक्षी सिन्हा
मेरे दो भाई हैं लव और कुश, दोनों ही मुझे बहुत प्यार करते हैं। जब कभी मंै उनके साथ कहीं बाहर जाती हूं, अपने आपको बहुत ज्यादा सेफ फील करती हूं। इसलिए नहीं कि वे बॉडी बिल्डर हैं, बल्कि इसलिए कि वे हमेशा मेरे लिए बहुत पजेसिव रहते हैं। रक्षाबंधन हमारे लिए बेहद खास दिन होता है। इस दिन मंै अपने दोनों भाइयों को पूरे रीति-रिवाज के साथ राखी बांधती हूं। उनकी मनपसंद मिठाई उनको खिलाती हूं, माथे पर तिलक लगाती हूं और उनकी आरती भी उतारती हूं। वे दोनों भी हर रक्षाबंधन पर मेरे लिए मेरा मनपसंद गिफ्ट लाते हैं। मुझे अपने घर में सिर्फ मम्मी-पापा से ही नहीं, बल्कि दोनों भाइयों से भी बहुत प्यार मिला है। इसलिए मंै थोड़ा बिगड़ गई हूं (हंसते हुए)। मुझे अपने दोनों भाइयों में जो सबसे अच्छी बात लगती है, वो हर वक्त मेरे लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हंै। े

करीना कपूर

करण जौहर मेरे मुंह बोले भाई हैं। हमारा ये रिश्ता काफी सालों से है। मुझे करण में अपने उस भाई की झलक नजर आती है, जिसके बारे में मैं बचपन में इमेजिन किया करती थी। दरअसल, जब मैं स्कूल में थी, तो मेरी सारी फ्रें ड्स रक्षाबंधन के अगले दिन अपने भाइयों के बारे में मुझे बताती थीं। तब मुझे बहुत दुख होता था, क्योंकि मेरा कोई सगा भाई नहीं है। उस समय मंै सोचा करती थी कि काश, मेरा भी कोई सगा भाई होता। मंै उसे प्यार से राखी बांधती और अपने दिल की सभी बातें उससे शेयर करती। जब मंै फिल्मों में आई, तो करण जौहर के रूप में मुझे अपना वो इमेजिनेशन वाला ब्रदर मिल गया। अब मंै हर साल उन्हें राखी बांधती हूं, हर बात उनसे शेयर करती हूं। करण भी मुझे हर मुश्किल में साथ देते हैं। े

रक्षा बंधन : स्नेह का अनमोल रिश्ता

रक्षा बंधन : स्नेह का अनमोल रिश्ता
भाई-बहन के पावन, स्नेहमयी रिश्ते की गरिमा को व्यक्त करता है-रक्षाबंधन का पर्व। इससे जुड़ी अनेक पौराणिक मान्यताएं और ऐतिहासिक घटनाएं, इसमें निहित उदात्त भावना को प्रमाणित करती हैं। भले ही आज की भागम-भाग जीवनशैली और पश्चिमी अंधानुकरण ने इस पर्व के स्वरूप को थोड़ा बदल दिया है लेकिन इसमें निहित मूल भावना आज भी वैसी ही है, जो भाई-बहन के रिश्ते को सबसे विशिष्ट स्वरूप प्रदान करती है।

सं पूर्ण विश्व की पर्व परंपरा और संस्कृति में सबसे अनूठा, सबसे पवित्र भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक है, रक्षाबंधन का त्योहार। वैसे तो पाश्चात्य देशों में मदर्स-डे, फादर्स-डे यहां तक कि सिस्टर्स-डे भी मनाया जाता है। लेकिन भाई-बहन के मधुर-प्रेम के लिए वहां कोई दिन, कोई उत्सव नहीं होता है। पारिवारिक संबंधों में भाई-बहन का रिश्ता अपने आप में कई मायने में विलक्षण है। एक ही माता-पिता की संतान होते हैं भाई-बहन। बचपन से ही साथ खेलना, खाना, रूठना, छीना-झपटी और माता-पिता की डांट के समय दोनों की एक-दूसरे को बचाने की कोशिश, इस संबंध की विलक्षणता को रेखांकित करती है। प्रति वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला यह पर्व, मानो संबंधों के नवीकरण का पर्व बन जाता है। विशेषत: तब, जब बहन विवाहित होकर अपनी ससुराल में पति व अन्य संबंधों के निर्वाह में व्यस्त हो जाती है। तब रक्षाबंधन (और भैयादूज) जैसे पर्व की दोनों को ही प्रतीक्षा रहती है।

पर्व में निहित भावना

रक्षाबंधन (जिसे राखी भी कहते हैं) में दो भाव प्रमुख हैं। पहला 'रक्षा-सुरक्षाÓ और दूसरा 'बंधनÓ। 'बंधनÓ शब्द में कोई नकारात्मकता नहीं होती। स्नेह के बंधन तो अत्यंत प्रिय होते है। भाई-बहन के संबंध के मूल में गहन सुरक्षाभाव, प्रेम, पवित्रता का संचार होता रहता है। 'रक्षा-सुरक्षाÓ का भाव व्यक्तिगत जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। विशेषत: स्त्री के लिए बहन के लिए-शारीरिक सुरक्षा जितनी जरूरी होती है, उतनी ही आवश्यक होती है भावात्मक सुरक्षा। इसीलिए भारतीय समाज और भारतीय परिवार-व्यवस्था में बहन के लिए 'भाईÓ का स्थान बहुत महत्वपूर्ण होता है। छोटा भाई हो तो बहन मां की तरह उसे दुलार करती है और बड़ा हो तो उसका सम्मान। भाई का स्नेह, भाई का मार्गदर्शन, भाई का हर परिस्थिति में साथ-संबंधों को गहराई देता है। वास्तव में भाई-बहन के रिश्ते में जो मैत्रीभाव होता है-वह अद्भुत होता है। यही मित्रता, दोस्ती, स्नेह और सम्मान का बंधन जीवन को अर्थवान् बनाता है।

यहां यह भी स्मरणीय रहे कि अन्य संबंध और रिश्ते जैसे पति, पत्नी या मित्रादि दोबारा मिल सकते हैं। मित्र तो जीवन भर नए-नए मिलते रहते हैं पर सहोदर भाई या सहोदरा बहन का दोबारा मिलना असंभव होता है। वाल्मीकि रामायण में लक्ष्मण के मूच्र्छित होने पर श्रीराम यही कहते हैं-

देशे-देशे कलत्राणि , देशे-देशे वान्धवा:।

परंतु देशं न पश्यामि, यत्र भ्राता सहोदर: ।।

कहने का सीधा अर्थ है कि सगा भाई या सगी बहन को खो देने से बढ़कर कष्टदायक कुछ भी नहीं। अत: दोनों को ही उदारता पूर्वक यह संबंध निभाने का प्रयत्न करना होगा। और रक्षाबंधन जैसे पर्वों की सार्थकता को सिद्ध करना होगा। इस पर्व को मनाने के पीछे मूल भावना यही है कि बहन अपने भाई के दीर्घायु और कल्याण की कामना करे और भाई हर स्थिति में अपनी बहन के सुख, रक्षा और कल्याण के लिए सदैव कटिबद्ध रहे।

पर्व का पारंपरिक स्वरूप

बहन द्वारा भाई की कलाई पर बांधा जाने वाला रक्षासूत्र या राखी एक कच्चे सूत के धागे की हो सकती है, या कलावा (लाल-पीला सूत) रेशम या फिर चांदी और सोने तक की हो सकती है। पर भावनाएं तो अनमोल रहती हैं। दोनों ही नए वस्त्रों में सुसज्जित होते हैं। राखी कलाई पर बांधकर भाई के मस्तक पर टीका या तिलक (रोली चावल से) लगाया जाता है तो भाई भी स्नेहपूर्वक कुछ न कुछ उपहार देता है, बहन को। इन दोनों के संबंधों का उल्लास पूरे परिवार पर छाया रहता है। पूरी-खीर और ढेरों अन्य पकवान बनते हैं। आत्मीयता के इन बंधनों से पारिवारिक घनिष्ठता सुदृढ़ होती है। इसीलिए बहन और भाई को ही नहीं पूरे परिवार को प्रतीक्षा रहती है, इस त्योहार की। कुछ घरों में बेटियां भी पिता को 'रक्षासूत्रÓ बांधती हैं।

पौराणिक मान्यताएं

इस पर्व के मूल में अनेक पौराणिक गाथाएं प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार इंद्र जब वृत्रासुर से हारकर लौटे तो बहुत उदास थे। इंद्राणी ने बृहस्पति देव द्वारा पे्ररित होकर दोबारा युद्ध के लिए जाते समय इंद्र को रक्षासूत्र बांधा और पति की विजय सुनिश्चित की। महाभारत में शिशुपाल वध के बाद कृष्ण की अंगुली से खून बहता देख द्रोपदी ने अपनी साड़ी से एक टुकड़ा फाड़कर पट्टी बांधी और खून का प्रवाह रोका। कहा जाता है, इस रक्षासूत्र के एवज में कृष्ण ने भाई की भूमिका निभाते हुए चीरहरण के समय उनकी लाज बचाने का दायित्व निभाया।

 बदल रहा है
भाई-बहन का रिश्ता
प श्चिमी संस्कृति के लगातार संक्रमण से न केवल हमारी जीवनशैली परिवर्तित हुई है, साथ ही हम सबकी सोच भी पूरी तरह बदल रही है। रिश्तों का स्वरूप बदल रहा है। किसी समय तक परिवार में व्याप्त अदब-लिहाज के पर्दे झीने हुए हैं। हालांकि इससे रिश्तों की गरिमा को थोड़ा नुकसान तो हुआ है लेकिन साथ ही रिश्ते में आए खुलेपन से पारिवारिक रिश्ते में औपचारिकताएं मिटी हैं। इससे विशेष रूप से महिलाएं लाभान्वित हुई हैं। भाई-बहन के रिश्ते को ही देखें तो अब किशोरावस्था और उसके बाद युवावस्था के दौर से गुजर रहे भाई-बहन अब एक-दूसरे से दोस्त की तरह बात करते हैं। ऐसी बातें भी शेयर कर लेते हैं, जिन्हें शेयर करना पहले संभव नहीं हुआ करता था। आज के दौर के युवा भाई-बहन अब सेंटीमेंटल होने के बजाय प्रैक्टिकल होने को ज्यादा तरजीह देने लगे हैं। अगर किसी कारणवश राखी के अवसर पर वे एक-दूसरे से मिल नहीं पाते तो इसमें दुखी या नाराज होने के स्थान पर एक-दूसरे की स्थिति और मजबूरी समझने की कोशिश करते हैं। ई-मेल या मोबाइल के जरिए भी एक-दूसरे तक अपनी भावना पहुंचाने को वो गलत नहीं मानते हैं। इस बदलाहट को लाने में कुछ अन्य बातों ने भी अहम भूमिका निभाई है। जैसे पहले की तरह अब अधिकतर मां-बाप बेटा-बेटी में फर्क नहीं करते हैं। इसके चलते कहीं न कहीं घर में पल रहे बच्चे यह समझते हैं कि सभी को मम्मी-पापा बराबर प्यार करते हैं। जो सुविधाएं बेटे को दी जाती हैं, उतनी ही बेटी को भी प्रदान की जाती हैं। इससे बेटियों में सम्मान का भाव विकसित हुआ है। साथ ही संतान में संपत्ति का समान अधिकार मिल जाने से भी इस रिश्ते को निभाने के दृष्टिकोण में बदलाव आया है। हालांकि कहीं कहीं इस वजह से भाइयों की दृष्टि में बहन के प्रति प्रेम व सम्मान घटा भी है। लेकिन यह मानसिकता भी कुछ समय बाद बदल जाएगी, इसमें संदेह नहीं। े

बॉलीबुड के भाई-बहन


बॉलीबुड के भाई-बहन

बॉलीवुड के कपूर और खान परिवार ही ऐसे परिवार हैं, जिनमें भाइयों ने बहनों के करियर को प्रमोट नहीं किया तो उनका विरोध भी नहीं किया।

सैफ अली-सोहा अली
सैफ अली खान की बहन सोहा अली खान ने 2004 में दिल मांगे मोर से हिन्दी फिल्मों में प्रवेश किया। सोहा अली खान को फिल्में दिलाने में उनकी मां शर्मिला टैगोर का प्रयास जरूर रहा।
लेकिन, सैफ ने अगर सोहा को फिल्में नहीं दिलायीं तो उनका विरोध भी नहीं किया। करिश्मा कपूर और करीना कपूर रणबीर कपूर की चचेरी बहनें हैं। रणबीर कपूर की सगी बहन रिद्धिमा शादीशुदा हैं। कपूर परिवार हमेशा से अपने घर की लड़कियों के फिल्मों में काम करने का विरोधी रहा है। शशि कपूर की पत्‍नी जेनिफर के कारण कपूर परिवार की लड़कियों ने फिल्मों में काम करना शुरू किया।

रणबीर कपूर ने कभी करीना और करिश्मा का देओल बंधुओं की तरह मुखर विरोध नहीं किया पर समर्थन भी नहीं किया। वहीं बॉलीवुड की बहनों का अपने भाइयों से गजब का लगाव है।

सास-बहू सीरियलों से नाम कमाने वाली एकता कपूर महत्वपूर्ण उदाहरण हैं। उनके सीरियलों और फिल्मों को लगातार सफलता मिल रही है, इसके बावजूद उनका पूरा ध्यान अपने भाई तुषार का करियर बनाने की ओर लगा हुआ है।

तुषार ने अपने करियर की शुरुआत करीना कपूर के साथ फिल्म मुङो कुछ कहना है से की थी। करीना का करियर टॉप पर है, पर तुषार आज भी स्ट्रगलर हैं। उन्हें स्ट्रगल से उबारने की जी-तोड़ कोशिश कर रही हैं- एकता। एकता कपूर ने तुषार के लिए कुछ तो है, क्या कूल हैं हम, शूटआउट एट लोखंडवाला, सी- कंपनी, शोर-इन द सिटी, द डर्र्टी पिक्चर और क्या सुपर कूल हैं हम जैसी फिल्में बनायीं। फराह खान मशहूर कोरियोग्राफर और निर्देशक हैं। उन्होंने मैं हूं ना और ओम शांति ओम जैसी हिट फिल्मों का निर्देशन किया है।

1992 से वह आमिर खान, सलमान खान और शाहरुख खान जैसे दिग्गजों की फिल्मों की कोरियोग्राफी कर रही है। ऐसा नहीं कि फरहा ने अपने भाई साजिद खान के लिए फिल्मों का निर्माण किया। लेकिन, कहीं ना कहीं फराह का भाई होने का फायदा साजिद को हमेशा मिलता रहा। ऐश्वर्या राय ने अपने भाई आदित्य राय को निर्माता बनाने के लिए दिल का रिश्ता बनायी। पर उसकी असफलता से ऐश्वर्या को जबर्दस्त आर्थिक नुकसान हुआ। अमीषा पटेल ने अपने करियर की शुरुआत ऋतिक रोशन के साथ फिल्म कहो ना प्यार है से की थी। अमीषा ने अपने भाई अष्मित पटेल को एक्टर बनाने के लिए अपने उस समय के अपने प्यार विक्रम भट्ट का भरपूर उपयोग किया। विक्रम भट्ट ने अपनी फिल्म इंतेहा में अष्मित को हीरो बनाया, मगर यह फिल्म असफल रही। अष्मित पटेल को भट्ट कैम्प में इंट्री का फायदा मिला भी। वह र्मडर और नजर जैसी बड़ी फिल्मों के हीरो बने। पर, उनका करियर नहीं बन सका। मनीषा कोइराला ने भी अपने भाई सिद्धार्थ को एक्टर बनाने के लिए फन-कैन बी डेंजरस समटाइम्स और अनवर जैसी फिल्में दिलवायीं और फिल्म निर्माता बना कर पैसा वसूल जैसी फिल्म बनायी। पर सिद्धार्थ खुद को एक्टर साबित कर सके, ना ही सफल निर्माता ।

गायिका लता मंगेशकर ने भी अपने रुतबे के सहारे अपने भाई हृदयनाथ मंगेशकर को संगीतकार बनाने की भरपूर कोशिश की। हृदयनाथ मंगेशकर को मशाल, धनवान और लेकिन जैसी फिल्में मिली भी। हृदयनाथ ने इन फिल्मों के लिए जो संगीत तैयार किया, वह अच्छा जरूर था। लेकिन पॉपुलर नहीं था कि दूसरी फिल्में मिलती। रानी मुखर्जी के भाई राजा टीवी सीरियल बनाते हैं।

जब राजा ने बतौर निर्देशक अपना पहला टीवी सीरियल किसी की नजर ना लगे लांच किया तो रानी मुखर्र्जी ने यह सुनिश्चित किया कि वह मौजूद रहें। हालांकि, उस समय उनकी तबियत ठीक नही थी। रानी मुखर्र्जी और काजोल के कजिन अयान मुखर्र्जी निर्माता करण जौहर की फिल्म वेकअप सिड से सफल डायरेक्टोरियल डेब्यू कर चुके हैं। केवल फरहान अख्तर और सलमान खान ही ऐसे भाई हैं, जिन्होंने अपनी बहनों का करियर बनाने में सक्रिय सहयोग दिया। फरहान अख्तर जोया अख्तर का करियर बनाने के लिए जी जान से जुटे हुए हैं। लक बाई चांस की जबर्दस्त असफलता के बावजूद जोया अख्तर को जो दूसरी फिल्म डायरेक्ट करने को मिली, वह निर्माता फरहान अख्तर की फिल्म जिन्दगी ना मिलेगी दोबारा थी।

उन्होंने इस फिल्म के लिए ऋतिक रोशन और कैटरीना कैफ को जुटाया। फिल्म की कहानी अपनी सफल फिल्म दिल चाहता है की लाइन पर रखवायी। जोया इस समय भी आमिर खान, करीना कपूर और रानी मुखर्र्जी अभिनीत रीमा कागती की फिल्म धुआं को लिख रही है। इस फिल्म के निर्माता भी फरहान अख्तर हैं। एक अन्य उदाहरण सलमान खान हैं। उन्होंने अपनी बहन अलविरा का तो नहीं, मगर बहन की खातिर अपने जीजा अतुल अग्निहोत्री का करियर बनाने के लिए पहले दोनों को निर्माता बना कर हैलो फिल्म बनायी। इस फिल्म की असफलता के बावजूद दुबारा बॉडीगार्ड जैसी फिल्म बना कर उन्हें सफल निर्माता बना ही दिया।

संजय दत्त, अभिषेक बच्चन, रणबीर कपूर, ऋतिक रोशन आदि कुछ ऐसे भाई हैं, जिनकी बहनों ने फिल्मों के बजाय राजनीति या शादी को अपना करियर चुना। नहीं तो शायद इन भाइयों को भी अपनी बहन के बगल में या विरोध में खड़ा होने पड़ता। भाइयों का करियर बनाने वाली बॉलीवुड की बहनों में अपवाद रवीना टंडन हैं, जिन्होंने अपने भाई राजीव टंडन और भाभी राखी को घर से निकलवा दिया।

सास बहू सीरियलों से नाम कमाने वाली एकता कपूर के सीरियलों और फिल्मों को लगातार सफलता मिल रही है, इसके बावजूद उनका पूरा ध्यान अपने भाई तुषार का करियर बनाने की ओर लगा हुआ है।

साजिद खान को एक निर्देशक के रूप में स्थापित करने में कोरियोग्राफर और निर्देशक बहन फराह खान का खासा योगदान रहा है। बॉलीवुड में भाई-बहनों की ऐसी कई जोड़ियां हैं जहां बहनों ने भाईयों का या फिर भाईयों ने बहनों का करियर संवारा है। फिर भले ही इनके करियर में कितने ही उतार-चढ़ाव आते रहें लेकिन अपने भाई-बहन की मदद करनी है, तो करनी है।

एकता-तुषार कपूर अमीषा-अस्मित पटेल फरहान-जोया अख्तर फरहा-साजिद खान